टिकट के पैसे नहीं हैं साहब – पुरष्कार डाक से भिजवा दीजिए
हलधर नाग जी के लिए जब राष्ट्रपति भवन से फ़ोन आया तो जवाब में उन्होनें यही कहा “टिकट के पैसे नहीं हैं साहब – पुरष्कार डाक से भिजवा दीजिए।”
अब हलधर नाग जी कौन हैं और उन्हें पद्म श्री पुरष्कार के लिए क्यों चुना गया ये जानना ज़रूरी है।
69 वर्षीय हलधर नाग जी कोसली भाषा के कवी हैं। और आज की तारीख़ में उनकी कविताएँ पाँच विद्वानों के पीएचडी अनुसंधान का विषय भी हैं।
इसके अलावा, संभलपुर विश्वविद्यालय इनके सभी लेखन कार्य को हलधर ग्रंथाबली-2 नामक एक पुस्तक के रूप में अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर चुकी है।
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हलधर जी का जन्म सन 1950 में संभलपुर से लगभग 76 किलोमीटर दूर, बरगढ़ जिले में एक गरीब परिवार में हुआ था। जब वह 10 साल के थे, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई, और वह तीसरी कक्षा के बाद पढ़ नहीं सके। इसके बाद वे एक मिठाई की दुकान पर बर्तन धोने का काम करने लग गए। दो साल बाद, उन्हें एक स्कूल में खाना बनाने का काम मिल गया, जहाँ उन्होंने 16 साल तक नौकरी की।
स्कूल में काम करते हुए, उन्होंने महसूस किया कि उनके गाँव में बहुत सारे स्कूल खुल रहे हैं।
हलधर जी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से एक बातचीत के दौरान कहा था, “मैंने एक बैंक से संपर्क किया और स्कूली छात्रों के लिए स्टेशनरी और खाने-पीने की एक छोटी सी दुकान शुरू करने के लिए 1000 रुपये का ऋण लिया।”
अब तक कोसली में लोक कथाएँ लिखने वाले नाग ने 1990 में अपनी पहली कविता लिखी। जब उनकी कविता ‘ढोडो बरगाछ’ (पुराना बरगद का पेड़) एक स्थानीय पत्रिका में प्रकाशित हुई, तो उन्होंने चार और कवितायेँ भेज दी और वो सभी प्रकाशित हो गईं। इसके बाद उन्होंने दुबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी कविता को आलोचकों और प्रशंसकों से सराहना मिलने लगी।
उन्हें लोगों से सम्मान मिलने लगा जिससे उन्हें और कविताएँ लिखने के लिए प्रोत्साहन मिला। इसलिए उन्होनें भी अपनी कविताएँ सुनाने के लिए आस पास के गांवों का दौरा करना शुरू कर दिया। जिससे उन्हें लोगों से अच्छी प्रतिक्रियाएँ मिलने लगीं।
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यहीं से उन्हें ‘लोक कवि रत्न’ नाम से जाना जाने लगा। नाग, बिना किसी किताब का सहारा लिए, अपनी कविताएँ सुनाने के लिए जाने जाते हैं।
वह रोज़ाना कम से कम तीन से चार कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जहाँ वह कविता पाठ करते हैं।
उनकी कविताएँ सामाजिक मुद्दों के बारे में बात करती है, उत्पीड़न, प्रकृति, धर्म, पौराणिक कथाओं से लड़ती हैं, जो उनके आस-पास के रोज़मर्रा के जीवन से ली गई हैं।
हलधर जी कहते हैं कि कविताओं में वास्तविक जीवन से मेल और लोगों के लिए एक संदेश होना चाहिए।
हमेशा एक सफेद धोती और नंगे पैर चलने वाले हलधर जी को, उड़िया साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए 2016 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा पद्म श्री पुरष्कार से सम्मानित किया गया।
हलधर जी कहते हैं, “कोसली में कविताओं में युवाओं की भारी दिलचस्पी देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। वैसे तो हर कोई एक कवि है, पर कुछ ही लोगों के पास उन्हें आकार देने की कला होती है।”
किताबों से प्रेम करने वाले और सामाजिक समस्यायों को कविताओं के रूप में लोगों के सामने रखने वाले हलधर जी की जीवनी आपको कैसी लगी, हमें कमेंट करके ज़रूर बताएँ।
अगर आपके पास भी आपकी लिखी हुई कोई कविता या कहानी है, तो आप हमें ई-मेल कर सकते हैं हमारे ईमेल badteraho@gmail.com पर। उस कविता को हम आपके नाम के साथ पोस्ट करेंगे।
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