बच्चों की वृद्धि पर भारी स्कूल बैग का असर
आज की पोस्ट में हम आपको बताएँगे भारी स्कूल बैग किस तरह बच्चों की सेहत और उनके विकास पर बुरा असर कर रहे हैं। आपने भी बच्चों को अक्सर भारी स्कूल बैग के साथ ज़रूर देखा होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्कूल बैग बच्चे के विकास को कैसे प्रभावित करते हैं? अगर आपके घर में भी बच्चे स्कूल जाते हैं तो ये पोस्ट आपको जरूर पड़नी चाहिए।
हम जो आपको बताने वाले हैं, वो आपके बच्चों की वृद्धि से सम्बंधित है। भारी स्कूल बैग आपके बच्चे के विकास को कैसे प्रभावित कर रहे हैं, इस पोस्ट को पूरा पढ़ें और उन सभी लोगो के साथ शेयर करें जिनके बच्चे स्कूल जाते हैं। क्योंकि इस पोस्ट में हम आपको बताएँगे कि भारी स्कूल बैग से बच्चों को क्या नुकसान है? और इसका क्या उपाय है ?
बच्चों की वृद्धि पर भारी बैग का असर
बच्चों का नॉलेज लेवल क्या है?
मैं आपको एक असली उदाहरण के बारे में बताती हूँ। मेरी एक दोस्त के कोचिंग सेंटर में एक बच्चा पढ़ाई करने आता है। मैं भी उस वक़्त वही बैठी थी। और वो बच्चा पहली क्लास का स्टूडेंट था। उस वक्त तक उसके ट्यूशन वाले टीचर दूसरी क्लास लेने में व्यस्त थे तो मेने सोचा कि मैं ही पढ़ा देती हूँ। मैंने बच्चे से होम-वर्क डायरी निकालने को कहा, तो उसे अपना सर हिला कर मना कर दिया। फिर मैंने कॉपी निकालने को कहा तो उसे वो भी नहीं पता। उसके बाद मेने उसका बैग उठा तो ऐसा लगा जैसे 8-10 किलोग्राम का कोई भारी सामान उठा लिया हो।
फिर मैंने एक करके उसकी सभी किताबें और कॉपी देखीं। और इसी में उसकी होम-वर्क डायरी भी थी, जिसे उसने मन कर दिया था। फिर मैंने उससे पूछा की गिनती कहा तक आती है, तो उससे फिर से सर हिला कर मना कर दिया। मुझे थोड़ा अजीब लगा, क्योंकि वो प्राइवेट स्कूल का बच्चा था और फर्स्ट क्लास में होने के बावजूद, उसे गिनतियाँ तक नहीं आती थीं।
हम क्या सोचते हैं?
हम सभी लोग अक्सर यही सोचते हैं कि सरकारी स्कूल की तुलना में प्राइवेट स्कूल के बच्चे ज़्यादा होशियार होते हैं लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है।
अब उसके बैग के वजन की बात करें, तो वो बहुत भारी था, लगभग 8-10 किग्रा. उसके पास सभी विषयों की रंगीन किताबें थी जो दिखने में भी काफी अच्छी थीं। कोई भी किताबों के कंटेंट को देखेगा तो यही सोचेगा कि बच्चा होशियार ही होगा जो इस लेवल की किताबें पढ़ रहा है। फिर भी उसे कुछ नहीं आता था, जबकी वो हर रोज उस 8-10 किग्रा के बैग को अपने कंधे पर लाद कर ले जाता है और फिर वापस लाता है। आप सोच सकते हैं कि प्राइवेट स्कूल के फर्स्ट क्लास के बच्चों की उम्र लगभग 7 साल होगी। और वो अपनी उम्र से ज़्यादा का वज़न रोज़ाना उठाता है।
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बच्चों का बैग भारी क्यों होता जा रहा है?
अब सवाल ये कि स्कूल बैग इतने भारी क्यों होते जा रहे हैं? इसकी अलग-अलग वजह हो सकती हैं। अभी जो हम वजह बता रहे हैं वो प्राइवेट स्कूल को देखते हुए बता रहे हैं। जैसे:-
1. बहुत ज्यादा सिलेबस का होना
2. एक ही विषय की 2-3 किताबें होना
3. टाइम-टेबल को फॉलो न करना
4. स्कूल द्वारा ज़्यादा कॉपी-किताबें बेचकर मुनाफा कमाना
प्राइवेट स्कूलों के लिए ज़्यादा कॉपी-किताबें देना एक बिजनेस की तरह है। इसलिए प्राइवेट स्कूलों में हर साल किताबें बदलती हैं। जिससे कि माता-पिता पास हो चुके छात्रों से पिछले साल की किताबें ना खरीदें। और इस तरह माता-पिता पर पैसे का बोझ और बच्चों पर किताब का बोझ बढ़ता जा रहा है।
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बच्चों की वृद्धि पर भारी बैग का असर
शारीरिक विकास पर प्रभाव
अब हम बात करेंगे कि इसका बच्चों की वृद्धि पर क्या असर पड़ रहा है। एक बच्चा अपनी युवावस्था तक लगातार शारीरिक विकास करता है। और जब वो बचपन से ही भारी वज़न का स्कूल बैग उठाता है तो उसकी ग्रोथ पर बुरा असर पड़ता है। क्योंकि छोटे बच्चों की हड्डियां और माँसपेशियाँ इतनी मजबूत नहीं होतीं हैं। इसका बुरा असर बच्चे की लम्बाई, कंधे, कमर, पीठ, रीढ़ की हड्डी पर पड़ता है।
अक्सर बच्चे ऐसी परेशानियों की शिकायत भी करते हैं। ये असर उस वक्त नजर नहीं आता, क्योंकि ये धीरे धीरे प्रभाव डालता है। इसीलिये आपको कभी पता ही नहीं चल पाता है। हाँ, दूसरे शब्दो में कहें तो आप अपने बच्चों को एक मज़दूर बना देते हैं जिसे पढ़ाई के नाम पर रोज़ाना मज़दूरी करनी पड़ती है।
मानसिक विकास पर प्रभाव
भारी वज़न का दूसरा असर यानि की किताबों और सिलेबस का ज़्यादा होना जो बच्चों की मानसिक आयु (Mental Age) से ज्यादा है। बच्चों की ये उम्र खेल-कूद (Outdoor Activity), रचनात्मक दिमाग (Creative Mind), कुछ नया सोचने और बनाने की होती है लेकिन ऐसा होता नहीं है।
बच्चे स्कूल से आने के बाद खाना खाकर ट्यूशन जाने की तैयारी करते हैं, ट्यूशन के बाद होम वर्क, उसके बाद डिनर और टीवी। इस तरह से उनका रोज़ाना का टाइम-टेबल चलता है।
आँखों की रोशनी पर प्रभाव
इसका तीसरा असर, यानि बच्चों की मानसिक आयु से ज़्यादा पढ़ने पर ज़ोर दिया जाता है। लेकिन असल में पढाई के नाम पर सिर्फ उन्हें रटना सिखाया जाता है। रटने के लिए बच्चों को लगतार किताबों पर फोकस करवाता जाता है। सिलेबस इतना ज़्यादा होता है कि उसका ज़्यादातर वक्त सिर्फ किताबों के कंटेंट को रटने में लगता है। जिसका असर ये होता है कि बच्चों की आँखें कमज़ोर होने लगती हैं।
अगर आपने कभी ध्यान दिया हो तो प्राइवेट स्कूलों के कई बच्चों को चश्मा लगा हुआ होता है। जबकी सरकारी स्कूलों में ये ना के बराबर होता है।
स्कूली बच्चों के लिए सरकारी दिशा निर्देश
अब बात करते हैं सभी समस्याओं को खत्म करने की। 2006 में पहली बार स्कूल बैग एक्ट बनाया गया था जिसमें ये कहा गया कि स्कूल बैग का वज़न बच्चों के वजन का 10% से ज्यादा नहीं होना चाहिए। लेकिन किसी ने भी इसे गंभीर नहीं लिया। बाल्की बच्चों पर ये बोझ और बढ़ गया। काफी सालों तक इस पर बहस भी चली पर कोई फैसला नहीं हुआ।
अक्टूबर 2018 में MHRD (मानव संसाधन और विकास मंत्रालय) ने एक बार फिर शक्ति से सभी राज्य सरकारों को नियम और कानून बनाने को कहा था। जिसे नवंबर 2018 में सभी राज्य सरकारों ने सर्कुलर प्रकाशित किया था और सख्ती से अमल में लाने को कहा था। इसके बारे में हम एक सर्कुलर की कॉपी भी लगा रहे हैं और उस सर्कुलर की जानकारी भी बता रहे हैं।
Class | School Bag Weight | Subjects | Other Remarks |
I – II | 1.5 Kg | Language Subject & Mathematics | No Home Work |
III – V | 2 – 3 Kg | Language, EVS & Mathematics | – |
VI and VII | 4 Kg | All Subjects | – |
VIII – IX | 4.5 Kg | All Subjects | – |
X | 5 Kg | All Subjects | – |
ये तो सरकार की तरफ से निर्देश हैं। लेकिन अभी भी कोई प्राइवेट स्कूल इसे फॉलो नहीं कर रहे हैं जिसका असर छोटे बच्चों के हेल्थ पर पड़ रहा है।
Parents को क्या करना चाहिए?
अब माता-पिता को भी अपने बच्चों की तरफ ध्यान देना होगा। माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं, उसके बाद ट्यूशन सेंटर। लेकिन उन्हें ख़ुद भी अपने बच्चों को टाइम देना होगा। उन्हे एक्टिविटी में शामिल करना होगा ताकि बच्चों की ग्रोथ सही तरीके से हो सके। नीचे हम कुछ बातें बता रहे हैं जो हर माता-पिता को फॉलो करनी चाहिए।
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Important Points
- बच्चों के स्कूल टीचर से मिलें और बच्चों की एक्टिविटी बढ़ाने, और सिलेबस को कम करने के बारे में बात करें।
- अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो अपने बच्चों को किसी दूसरे अच्छे स्कूल में या सरकारी स्कूल में एडमिशन कराएँ।
- बच्चों को सबसे पास के स्कूल में दाखिला कराएँ, जिससे कि उसे ज़्यादा दूर न जाना पड़े।
- बच्चों के स्कूल बैग में, उसके टाइम-टेबल के अनुसार कॉपी-किताबें रखें। अगर बच्चा समझदार है तो टाइम-टेबल मैनेजमेंट सिखाएँ।
- बच्चों की रूचि के अनुसर उसे प्रेरित करें और मदद करें। ज़बरदस्ती उन पर बोझ न डालें।
- बच्चों के साथ बैठ कर स्कूल की गतिविधि के बारे में बात करें। ये जानने की कोशिश करें कि वो क्या सोचता है।
- उसके साथ वक़्त बिताएँ और पूछें की आज उसने स्कूल में क्या नया सीखा।
ये कुछ बिंदु हैं जो हमें सही लगे, अगर आपके पास और भी बेहतर सुझाव हैं तो हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताएँ।
Conclusion || निष्कर्ष
आज की पोस्ट उन सभी मासूम बच्चों के लिए है जो ना चाहते हुए भी पढ़ाई के नाम पर रोज़ाना बोझ उठाते हैं। एक अनुमान के अनुसार बच्चे रोज़ाना 60 मिनट तक भारी स्कूल बैग का बोझ उठाते हैं। इसलिए सभी माता-पिता से हमारी यही गुज़ारिश है कि अब आपको एक्टिव होना पड़ेगा अपने बच्चों के लिए। क्योंकि वो मासूम है, कोई बाल मजदूर नहीं। इसलिए बच्चे की सही मानसिक और शारीरिक वृद्धि के लिए उस पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।
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1 Comments
Akshay kumar
July 21, 2019 at 4:23 pmIt’s reality of today …👍