दस बरस से मैं उस घर नहीं गया – शायरी
ये शायरी सरताज शायर के जानिब से पोस्ट की गयी है। इस शायरी में सरताज शायर ने अपनी मोहब्बत की दास्ताँ को बयाँ किया है। अगर आपको इनकी शायरी अच्छी लगे तो कमेंट ज़रूर करिएगा।
आँखों से कू-ए-यार का मंज़र नहीं गया,
हालाँकि दस बरस से मैं उस घर नहीं गया।
उस ने मज़ाक़ में कहा मैं रूठ जाऊँगी,
लेकिन मेरे वजूद से ये डर नहीं गया।
साँसें उधार ले के गुज़ारी है ज़िंदगी,
हैरान वो भी थी कि मैं क्यों मर नहीं गया।
शाम-ए-विदाअ लाख तसल्ली के बावजूद,
आँखों से उस की दुख का समुंदर नहीं गया।
उस घर की सीढ़ियों ने सदाएँ तो दीं मगर,
मैं ख़्वाब में रहा कभी ऊपर नहीं गया।
बच्चों के साथ आज उसे देखा तो दुख हुआ,
उन में से कोई एक भी माँ पर नहीं गया।
पैरों में नक़्श एक ही दहलीज़ थी ‘सरताज’,
उस के सिवा मैं और किसी दर नहीं गया।
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