फ़ातिमा शेख़ – भारत की पहली मुस्लिम टीचर

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आज की इस पोस्ट में हम आपको बताएँगे फ़ातिमा शेख़ के बारे में जो सावित्रीबाई फुले की तरह ही देश के पहले गर्ल्स स्कूल की टीचर थीं। इन्होनें ही सावित्रीबाई और उनके पति को अपना घर रहने और स्कूल खोलने के लिए दिया था। यह स्कूल 1848 में पुणे के भिडेवाड़ा में लड़कियों के लिए खोला गया था।

कौन हैं फ़ातिमा शेख़?

फ़ातिमा शेख़ का जन्म 9 जनवरी 1831 को हुआ था। वह भारत की पहली महिला मुस्लिम टीचर भी हैं। और इसके साथ साथ समझ सुधारक भी थीं जिन्होनें फुले दंपति के साथ मिलकर काम किया था और पढ़ाया था। 9 अक्टूबर 1900 को उनका देहांत हो गया था।

9 जनवरी 2022 को गूगल ने फ़ातिमा शेख़ को उनकी 191वीं जयंती पर डूडल बनाकर सम्मानित भी किया। और जब भी सावित्रीबाई फुले की जयंती मनाई जाती है तो उसी के साथ फ़ातिमा शेख़ को भी याद किया जाता है।

सामाजिक योगदान

फ़ातिमा शेख़ ने बालिका सावित्रीबाई के साथ सिंथिया फर्रार द्वारा संचालित पुणे के अध्यापक प्रशिक्षण विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की थी। महाराष्ट्र सरकार ने उर्दू टेक्स्ट बुक बाल भारती में फ़ातिमा शेख़ के योगदान का ज़िक्र किया है। हाल ही में 2022 में, आंध्र प्रदेश सरकार ने भी स्कूल के पाठ्यक्रम में फ़ातिमा शेख़ की कहानी को सम्मिलित किया है।

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फ़ातिमा शेख़ का काम सावित्रीबाई के काम से कम नहीं है। कई मायनों में ज़्यादा साहसिक और परोपकारी भी माना जा सकता है।
फ़ातिमा शेख़ फुले दंपति द्वारा चलाए जा रहे सभी पाँच स्कूलों में पढ़ाती थीं। उन्होंने अपने दम पर 1851 में मुंबई में दो स्कूलों की स्थापना भी की। हालाँकि, उन्हें वह मान्यता नहीं मिली है जिसकी वह हकदार थीं। वह देश के गुमनाम नायकों में से एक हैं।

उनका नाम चर्चा में क्यों नहीं रहा?

फ़ातिमा शेख़ के बारे में हम बहुत कम जानते हैं। मुस्लिम लड़कियों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने के उनके प्रयासों के बारे में चर्चा होती है। वे मुस्लिम मोहल्लो में भी जाती थीं और परिवारों को स्त्री शिक्षा के बारे में बताती थीं. फातिमा शेख के बारे में जानकारी का स्रोत सावित्रीबाई द्वारा पति ज्योतिबा फुले को लिखे पत्र में हैं।

लेकिन फिर भी फ़ातिमा शेख़ के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। उसकी अलग अलग वजह हैं।

पहला कारण

जिसमें पहला यह की फ़ातिमा शेख़ का कोई लिखित कार्य नहीं है जिस वजह से हम उनके विचारों के बारे में बहुत कम जानते हैं। जबकि सावित्रीबाई अपना काम करने के साथ लगातार लिख भी रहीं थीं और ये लेखन कविता से लेकर गद्य और पत्र यानी कई विधाओं में था। इसलिए सावित्रीबाई के बारे में बात करना आसान है।

फ़ातिमा शेख़ के बारे में हम नहीं जानते कि उनका निकाह हुआ था या नहीं। उनके भाई उस्मान शेख ने फुले दंपति के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और विरोध के बावजूद उन्हें स्कूल खोलने के लिए मकान दिया, लेकिन उस्मान शेख के बारे में भी जानकारियों का अभाव है।

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दूसरा कारण

दूसरे वजह यह कि फ़ातिमा शेख़ को किसी समाज सुधार आंदोलन ने अपने प्रतीक के रूप में प्रचारित नहीं किया। जबकि उन्होंने सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर समाज सुधारक के रूप में काम किया था। जाति उन्मूलन के लिए काम करने वालों ने और जाति विरोधी समाज सुधारकों ने फुले दंपति के विचारों को अपनाया भी लेकिन मुस्लिम नायिका फातिमा शेख को पर्याप्त महत्व नहीं दिया।

यानी फातिमा शेख को अपनों ने सराहा ही नहीं और जिनके लिए उन्होंने काम किया, उनके पास अपने नायक और नायिका के रूप में फुले दंपति थीं। फ़ातिमा शेख़ इतिहास के एक निर्मम संयोग का शिकार बन कर रह गईं। लेकिन वर्तमान दौर में जैसे जैसे लोगों को उनके बारे में जानकारी मिल रही है, वे उनके द्वारा किए गए योगदान और समाज सेवा के लिए उन्हें सराहने लगे हैं।

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