जामिया मिल्लिया इस्लामिया: इतिहास, विकास और उपलब्धियाँ

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जामिया मिलिया इस्लामिया का इतिहास

जामिया मिलिया इस्लामिया का इतिहास भारत की स्वतंत्रता संग्राम और मुसलमानों की शैक्षिक जागरूकता से जुड़ा हुआ है। यह संस्थान 1920 में अलीगढ़ में स्थापित की गई थी, जो अविभाजित भारत के यूनाइटेड प्रॉविन्स (वर्तमान उत्तर प्रदेश) का हिस्सा थी। उस समय भारत में खिलाफत आंदोलन और महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन जोरों पर थे। बल्कि यूं कहें कि जामिया मिलिया इस्लामिया ब्रिटिश समर्थित शैक्षिक संस्थानों के बहिष्कार का परिणाम थी तो गलत न होगा। इस उथल-पुथल के दौर में उस समय के देश के ईमानदार नेताओं ने यह महसूस किया कि ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के अधीन मुसलमान शिक्षा और सामाजिक प्रगति में पीछे रह गए हैं, जिससे उनके लिए एक शैक्षिक संस्थान स्थापित करना जरूरी समझा गया जो उन्हें आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ इस्लामी मूल्यों से भी परिचित करा सके।

जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापकों में मौलाना महमूद हसन, हकीम अजमल खान, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी और अब्दुल मजीद ख्वाजा जैसे प्रमुख नेता शामिल थे, जिन्होंने न केवल राजनीतिक क्षेत्र में बल्कि शैक्षिक मोर्चे पर भी देश की सेवा की। जामिया मिलिया की पहली ईंट की नींव स्वतंत्रता सेनानी मौलाना महमूद हसन ने शुक्रवार, 29 अक्टूबर 1920 को रखी। जामिया का पहला चांसलर हकीम अजमल खान को बनाया गया जबकि पहले वाइस चांसलर मौलाना मोहम्मद अली जौहर को नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में जामिया ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ राष्ट्रीय आंदोलन में पूरा हिस्सा लिया और राष्ट्रीय जागरूकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जामिया की स्थापना के बाद, इसका मिशन स्पष्ट था जिसमें भारतीय मुसलमानों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना, ताकि वे आधुनिक दुनिया की चुनौतियों का सामना कर सकें और राष्ट्रीय विकास में अपना योगदान दे सकें , शामिल था।

उस समय, जामिया मिलिया इस्लामिया ने न केवल शैक्षिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भी अपनी अहमियत साबित की। खिलाफत आंदोलन के अंत और असहयोग आंदोलन की असफलता के बाद जामिया को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। एक समय ऐसा भी आया जब लगा कि जामिया जीवित नहीं रह पाएगा। यह वह ऐतिहासिक क्षण था जब गांधी जी ने कहा था कि अगर मुझे कटोरा लेकर भीख भी मांगनी पड़े, तो मैं जामिया के लिए कटोरा लेकर जाऊंगा। लेकिन जामिया के संस्थापकों के बलिदानों और महात्मा गांधी के समर्थन ने इस संस्थान को बचाया।

1925 में जामिया मिलिया इस्लामिया को अलीगढ़ से दिल्ली के करोल बाग में स्थानांतरित किया गया ताकि इसे बचाया जा सके। यह वही वर्ष था जब जामिया के पुनरुद्धार में डॉ. ज़ाकिर हुसैन, डॉ. आबिद हुसैन और डॉ. मोहम्मद मजीब जैसी महान हस्तियां विदेशों में शिक्षा प्राप्त करके और अपने उज्ज्वल भविष्य को छोड़कर भारत में जामिया से जुड़ीं। इसके बाद 1936 में दिल्ली के ओखला क्षेत्र में जामिया का नया कैंपस बनना शुरू हुआ, जहाँ जामिया के विभिन्न विभाग स्थानांतरित हुए। यहां, जामिया ने न केवल शैक्षिक सुधारों को पेश किया बल्कि राष्ट्रीय आंदोलन के साथ भी अपनी निष्ठा को बनाए रखा।


जामिया मिल्लिया इस्लामिया का विकास

जामिया मिलिया इस्लामिया ने शुरुआत में एक छोटे संस्थान के रूप में अपना सफर शुरू किया था, लेकिन धीरे-धीरे यह एक राष्ट्रीय स्तर की प्रमुख विश्वविद्यालय के रूप में उभरा। 1962 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने जामियाको “डीम्ड यूनिवर्सिटी” का दर्जा दिया, और 1988 में भारतीय संसद ने एक विशेष अधिनियम के माध्यम से इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का स्थान दे दिया। इस महत्वपूर्ण मील के पत्थर ने जामिया की शैक्षिक प्रतिष्ठा को और अधिक मजबूत किया और इसे देश के विभिन्न हिस्सों से छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में सक्षम बनाया।

आज जामिया मिलिया इस्लामिया नर्सरी से लेकर डॉक्टरेट तक की शिक्षा प्रदान कर रही है। प्रारंभिक स्कूल से लेकर नौ संकायों और कई शोध केंद्रों की उपस्थिति में यह एक पूर्ण शैक्षिक संस्थान बन चुका है। यहाँ इंजीनियरिंग, विज्ञान, कला, समाज विज्ञान, कानून, चिकित्सा विज्ञान, और व्यापार प्रशासन सहित विभिन्न क्षेत्रों में उच्च शैक्षिक कार्यक्रम उपलब्ध कराए जा रहे हैं। जामिया का पाठ्यक्रम आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ इस्लामी मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारियों को भी ध्यान में रखता है, जिससे छात्रों को एक संपूर्ण और व्यापक शिक्षा प्रदान की जाती है।

जामिया मिलिया इस्लामिया ने शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है और यह संस्थान हमेशा सामाजिक कल्याण और सामाजिक न्याय पर जोर देता है। जामिया के संस्थापकों ने जिस मिशन के साथ इस संस्थान की नींव रखी थी, वह आज भी जामिया के पाठ्यक्रम और शैक्षिक कार्यक्रमों का हिस्सा है। इस संस्थान ने शिक्षा को सामाजिक और नैतिक प्रशिक्षण के साथ जोड़ने का कार्य किया है, ताकि छात्रों को न केवल शैक्षिक क्षेत्र में बल्कि सामाजिक और नैतिक मोर्चे पर भी मजबूत बनाया जा सके।

1988 में जामिया को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद इसकी शैक्षिक गतिविधियों में और अधिक विस्तार हुआ और छात्रों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। जामिया की शैक्षिक प्रगति ने इसे भारत के प्रमुख शैक्षिक संस्थानों में शामिल कर दिया है, और आज यह संस्थान न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी शैक्षिक और शोध गतिविधियों के कारण एक विशिष्ट स्थान रखता है।


जामिया मिल्लिया इस्लामिया की उपलब्धियाँ

जामिया मिलिया इस्लामिया ने न केवल शैक्षिक क्षेत्र में बल्कि अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। खास तौर पर सिविल सेवा परीक्षाओं में जामिया की भूमिका सराहनीय है। जामिया ने सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी के लिए “रेजिडेंशियल कोचिंग अकादमी” (आरसीए) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाओं और अल्पसंख्यक वर्गों के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण कोचिंग प्रदान करना है। इस अकादमी में हर साल सैकड़ों छात्रों को सिविल सेवाओं की परीक्षाओं के लिए तैयार किया जाता है, और इसके परिणामस्वरूप जामिया के छात्र विभिन्न सरकारी पदों पर नियुक्त हो रहे हैं।

यह जामिया की सफलता का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जहाँ मुस्लिम छात्रों के अलावा अन्य पिछड़े वर्गों के छात्रों को भी संपूर्ण आवास, शिक्षा, और कोचिंग मुफ्त में प्रदान की जाती है। इस अकादमी में जामिया ने न केवल शैक्षिक गुणवत्ता को ऊंचा किया है बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी की दिशा में भी कदम बढ़ाया है, जो कि एक उत्कृष्ट उदाहरण है। सिविल सेवा के क्षेत्र में जामिया की उपलब्धियों ने उसे राष्ट्रीय स्तर पर एक अद्वितीय स्थान दिलाया है। जामिया की शैक्षिक और शोध कार्यों में भी उत्कृष्टता रही है।

2023 में नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) के अनुसार जामिया को “विश्वविद्यालय” श्रेणी में तीसरी पायदान प्राप्त हुई, जो इसकी उच्च शैक्षिक मानकों का प्रमाण है। इसके अलावा, जामिया के विभिन्न शोध केंद्रों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर शोध किया जा रहा है। जामिया के संकाय और छात्रों ने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में भाग लिया है और शोध पत्र प्रकाशित किए हैं, जो इसकी शोध के क्षेत्र में उपलब्धियों को दर्शाते हैं।

जामिया मिलिया इस्लामिया का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यहां छात्रों को शैक्षिक गतिविधियों के साथ-साथ सामाजिक और नैतिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है, जिससे वे न केवल ज्ञान के क्षेत्र में बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियों में भी सफल होते हैं। जामिया की शैक्षिक प्रणाली छात्रों को एक पूर्ण नागरिक बनाने में मदद करती है, जो कि न केवल अपनी शिक्षा में बल्कि सामाजिक कल्याण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।


जामिया मिलिया इस्लामिया ने अपनी स्थापना से लेकर अब तक उतार-चढ़ाव से भरी एक महान यात्रा तय की है। इसने इसे एक महत्वपूर्ण शैक्षिक संस्थान बना दिया है और जिसके परिणामस्वरूप जामिया निरंतर विकास के मार्ग पर अग्रसर है। यह संस्थान न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी एक विशिष्ट पहचान बना चुका है। जामिया के छात्रों और शिक्षकों की मेहनत और लगन ने इसे देश के सर्वोत्तम शैक्षिक संस्थानों में शामिल किया है।

सिविल सेवा परीक्षाओं में जामिया की उपलब्धियां और राष्ट्रीय स्तर पर इसकी रैंकिंग इसकी शैक्षिक गुणवत्ता का प्रमाण देती हैं। जामिया का भविष्य भी उज्ज्वल प्रतीत होता है, और यह संस्थान आने वाली पीढ़ियों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने और भारत की प्रगति में अपना योगदान देता रहेगा। जामिया के 104वें स्थापना दिवस के अवसर पर जामिया के संस्थापकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हमारी अल्लाह ताला से दुआ है कि जामिया ऐसे ही दिन दूग़नी रात चौगुनी तरक्की करता रहे।

हुए थे आ के यहीं खेमा ज़न वो दीवाने,
उठे थे सुन के जो आवाज़ रहबरान वतन

रिज़वान सैफ़ी
(लेखक शिक्षा निदेशालय , दिल्ली में प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक सामाजिक विज्ञान के पद पर कार्यरत हैं।)


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