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इस मस्जिद के 17 गुंबद बने हैं सोने के, 6 क्विंटल गोल्ड का हुआ इस्तेमाल

जामा मस्जिद का इतिहास अलीगढ़ की जामा मस्जिद का निर्माण 18वीं शताब्दी में किया गया था। इस मस्जिद को नवाब नसीरुद्दीन हैदर के शासनकाल के दौरान बनाया गया था, जो मुगलकाल की उत्कृष्ट स्थापत्य कला का प्रतिनिधित्व करती है। मस्जिद का निर्माण उस समय के प्रमुख शिल्पकारों द्वारा किया गया था, जो मुगलकालीन शिल्पकला के […]

जामा मस्जिद का इतिहास

अलीगढ़ की जामा मस्जिद का निर्माण 18वीं शताब्दी में किया गया था। इस मस्जिद को नवाब नसीरुद्दीन हैदर के शासनकाल के दौरान बनाया गया था, जो मुगलकाल की उत्कृष्ट स्थापत्य कला का प्रतिनिधित्व करती है। मस्जिद का निर्माण उस समय के प्रमुख शिल्पकारों द्वारा किया गया था, जो मुगलकालीन शिल्पकला के विशेषज्ञ थे। यह मस्जिद न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए एक केंद्र थी, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक स्थल के रूप में भी काम करती थी, जहाँ लोग सामूहिक रूप से मिलते और धार्मिक विचार-विमर्श करते थे। देश मे सबसे ज्यादा सोने का इस्तेमाल अलीगढ़ के मस्जिद में हुआ है. अलीगढ़ की जामा मस्जिद भारत ही नहीं बल्कि एशिया में सबसे ज्यादा सोना लगे होने के कारण मशहूर है. अलीगढ़ के कोट इलाके में स्थित जामा मस्जिद और ताजमहल में कई समानताएं हैं. जामा मस्जिद अवधी व मुगलकालीन वास्तु कला का अनूठा संगम है.

मस्जिद के कमेटी सदस्य गुलरेज़ अहमद ने बताया कि, कहा जाता है ताजमहल बनाने वाले मुख्य इंजीनियर ईरान के अबू ईसा अंफादी के पोते ने जामा मस्जिद का निर्माण किया था.जामा मस्जिद के 17 गुंबदों को ठोस सोने से बनाया गया है. जबकि ताजमहल और स्वर्ण मंदिर में केवल सोने की परत चढ़ाई गई है. इस मस्जिद में लगभग 5 से 6 क्विंटल सोना लगा हुआ बताया जाता है.साथ ही इस मस्जिद में लगभग 5,000 लोग एक साथ बैठकर नमाज अदा कर सकते हैं और इस मस्जिद में महिलाओं के अलग से नमाज अदा करने की जगह बनी हुई है. पांच हजार से ज्‍यादा लोग एक साथ पढ़ते हैं नमाजकरीब 300 साल पहले जामा मस्जिद का निर्माण कोल के गवर्नर साबित खान जंगे बहादुर के शासनकाल में साल 1724 में कराया गया था. इसके निर्माण में 4 साल लगे थे. तब जाकर यह साल 1728 में बनकर तैयार हुई थी कहा जाता है शहीदों की बस्तीजामा मस्जिद और ताजमहल की कारीगरी में बहुत समानताएं देखने को मिलती है. इस मस्जिद में 17 गुंबद हैं. अलीगढ़ की यह जामा मस्जिद देश की पहली मस्जिद है. जहां पर 1857 की क्रांति के 73 शहीदों की कब्रें हैं. इसलिए इसे गंज-ए-शहीदान यानी शहीदों की बस्ती भी कहा जाता है.

1. मस्जिद के आसपास के क्षेत्र

जामा मस्जिद के आस-पास के इलाके भी काफी जीवंत हैं। यहाँ के बाज़ारों में विभिन्न प्रकार के पारंपरिक और आधुनिक सामान मिलते हैं। मस्जिद के पास कई छोटी दुकानें और खान-पान के स्थान हैं, जो मस्जिद में आने वाले लोगों को सेवाएँ प्रदान करते हैं। विशेष रूप से रमज़ान के महीने में यहाँ का बाज़ार अपनी रौनक में रहता है और इफ्तार के लिए तरह-तरह के व्यंजन मिलते हैं। जामा मस्जिद की वास्तुकला में मुगलकालीन शिल्पकला की झलक मिलती है। इसका मुख्य प्रवेश द्वार भव्य है और पूरी मस्जिद में बेहतरीन नक़्क़ाशी और सजावट की गई है। मस्जिद की ऊँची मीनारें और गुंबद इसकी शान बढ़ाते हैं। मस्जिद के अंदरूनी हिस्से में संगमरमर और लाल पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, जो इसकी खूबसूरती को और बढ़ाते हैं। इसके आंगन में सैकड़ों लोग एक साथ नमाज़ अदा कर सकते हैं, जिससे यह क्षेत्र के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है।

2. धार्मिक महत्व

जामा मस्जिद अलीगढ़ में मुस्लिम समुदाय के लिए एक विशेष स्थान रखती है। यहाँ हर जुमे के दिन (शुक्रवार) विशेष नमाज़ अदा की जाती है, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। रमज़ान के पवित्र महीने में मस्जिद में इफ्तार और विशेष नमाज़ों का आयोजन होता है, जिसमें स्थानीय लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इसके अलावा, मस्जिद में धार्मिक शिक्षा और इस्लामी सभाओं का आयोजन होता रहता है, जिससे युवाओं और बच्चों को धार्मिक ज्ञान प्राप्त होता है।

3. समाज और संस्कृति पर प्रभाव

जामा मस्जिद अलीगढ़ के लोगों के जीवन में सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखती है। यह मस्जिद केवल धार्मिक कार्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ पर होने वाली सभाएं और सामाजिक कार्यक्रम सामुदायिक संबंधों को मज़बूत करने में भी मदद करते हैं। ईद और अन्य धार्मिक त्योहारों के मौके पर मस्जिद का माहौल देखने लायक होता है, जहाँ लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं और खुशियाँ बांटते हैं।

4. पर्यटन और धरोहर के रूप में पहचान

अलीगढ़ की जामा मस्जिद पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र है। इसकी ऐतिहासिकता और वास्तुकला को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहाँ आते हैं। इतिहास और संस्कृति के प्रेमियों के लिए यह मस्जिद एक खजाना है। यह मस्जिद अलीगढ़ के समृद्ध इतिहास का एक अहम हिस्सा है और इसे संरक्षित करना और उसकी देखभाल करना ज़रूरी है।

5 मस्जिद की संरक्षा और भविष्य

आज के समय में जामा मस्जिद की संरक्षा और उसकी देखभाल के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। स्थानीय प्रशासन और समुदाय के लोग मस्जिद के संरक्षण के लिए मिलकर काम कर रहे हैं ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस धरोहर को देख सकें और इसके महत्व को समझ सकें। इसके लिए कई मरम्मत और पुनर्निर्माण के कार्य भी होते रहे हैं।

निष्कर्ष: अलीगढ़ की जामा मस्जिद न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक धरोहर भी है जो इस क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति की झलक प्रस्तुत करती है। इसकी भव्य वास्तुकला, धार्मिक महत्व और सामाजिक योगदान इसे एक विशेष स्थान बनाते हैं।

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