यह कविता हमें दिप्ती पाठक जी ने भेजी है। इनके द्वारा भेजी गई और भी कविताएँ हैं जो हमने अपने ब्लॉग में प्रकाशित की हैं। जैसे कि: हमारे वीर जवान – कविता
आज कि इस कविता में दिप्ती जी ने बहुत ही ख़ूबसूरत अंदाज़ में माँ और बेटी के बीच के रिश्ते और उनके जीवन के अलग अलग पड़ाव के एहसास को बताया है। उम्मीद करते हैं ये कविता आपको बहुत पसंद आएगी। ये कविता कैसी लगी, हमें कमेंट करके भी बता सकते हैं।
रिश्ता होता है उनका अनमोल,
जिनका ना हो कोई नाप-तोल।
अपनी कोख से उसे जन्म देकर,
बड़ा करती हूँ उसे पाल पोसकर।
जब आती है बेटी की विदाई की घड़ी,
तब होती है माँ के जीवन की सबसे बड़ी कड़ी।
माँ के जीवन में बेटी होती है ज़रूरी,
उसे छोड़ माँ हो जाती है अधूरी।
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जिस दिन मेरी बेटी की हुई विदाई ,
उस दिन के बाद मुझे उसकी ही याद सताई।
हर पल में रहती थी इस बात के डर में,
कि क्या मेरी बेटी ख़ुश है उस घर में ?
पहले करती थी वह तोहफों के लिए इज़हार,
अब तो ले जाने पर भी कर देती है इंकार।
बेटियाँ ही होती हैं घर कि रौनक,
जिनसे बड़ी नहीं है कोई भी दौलत।
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