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110 साल की दादी के लिए हर महीने 25 किमी पैदल चलने वाला डाकिया

डिजिटल पेमेंट, ऑनलाइन बैंकिंग और मोबाइल ऐप्स के इस दौर में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो इंसानियत को सबसे ऊपर रखते हैं। तमिलनाडु के 55 वर्षीय पोस्टमास्टर एस. क्रिस्टुराजा ऐसे ही एक इंसान हैं, जो हर महीने घने जंगलों और मुश्किल रास्तों से गुजरकर 110 साल की बुजुर्ग महिला तक उनकी पेंशन पहुँचाते हैं। […]

postmaster treks 10km to deliver pension

डिजिटल पेमेंट, ऑनलाइन बैंकिंग और मोबाइल ऐप्स के इस दौर में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो इंसानियत को सबसे ऊपर रखते हैं। तमिलनाडु के 55 वर्षीय पोस्टमास्टर एस. क्रिस्टुराजा ऐसे ही एक इंसान हैं, जो हर महीने घने जंगलों और मुश्किल रास्तों से गुजरकर 110 साल की बुजुर्ग महिला तक उनकी पेंशन पहुँचाते हैं।

कौन हैं एस. क्रिस्टुराजा?

एस. क्रिस्टुराजा, 55 वर्षीय पोस्टमास्टर, कलक्कड़ मुंडनथुरई टाइगर रिज़र्व के नज़दीक स्थित डाकघर की अकेले जिम्मेदारी संभालते हैं। वे हर महीने खुद पेंशन लेकर पहाड़ी पर बसे एक सुदूर गांव तक पहुँचते हैं, जहाँ 110 वर्षीया कुट्टियम्मल रहती हैं।

वादा जो एक ज़िंदगी का सहारा बन गया

एक बार कुट्टियम्मल जब पेंशन के लिए डाकघर पहुँचीं तो ज़िला कलेक्टर ने उन्हें भरोसा दिया कि उनकी पेंशन हर महीने उनके घर तक पहुँचाई जाएगी। यह ज़िम्मेदारी इंडिया पोस्ट को सौंपी गई और उस शाखा के प्रभारी होने के नाते क्रिस्टुराजा ने बिना हिचक इसे अपना कर्तव्य मानकर स्वीकार कर लिया।

सफर: नाव, जंगल और पहाड़ का संघर्ष

कुट्टियम्मल का घर इंजीकुज़ी नाम की पहाड़ी बस्ती में है, जहाँ तक पहुँचना आसान नहीं। क्रिस्टुराजा का एक दिन कुछ ऐसा होता है:

सुबह 7 बजे डाकघर से निकलते हैं। पहले लगभग 4 किमी तक नाव से सफर करते हैं। इसके बाद करीब 10 किमी तक जंगल, ऊबड़-खाबड़ रास्तों और चढ़ाई वाले पहाड़ी ट्रेल से पैदल चलते हैं। जब डैम में पानी कम हो, तो उन्हें लगभग 25 किमी लंबा वैकल्पिक पैदल रास्ता लेना पड़ता है, जो और भी थकाने वाला होता है।

रास्ते में वे अक्सर जंगल के बीच बहती छोटी नदी किनारे नाश्ता करते हैं और आगे एक मंदिर पर रुककर स्नान के बाद आगे बढ़ते हैं।

शाम तक लौटना, चेहरे पर थकान नहीं, संतोष ज़्यादा

कुट्टियम्मल तक पेंशन सुरक्षित पहुँचाकर वे दोपहर बाद वापस लौटना शुरू करते हैं और आमतौर पर शाम 5 बजे तक घर पहुँच जाते हैं। यह पूरा सफर शारीरिक रूप से बेहद कठिन है, लेकिन उनके लिए सबसे ज़्यादा मायने यह रखता है कि एक 110 साल की बुजुर्ग महिला को अपने हक की पेंशन समय पर और सम्मान के साथ मिल रही है।

सभी ने नहीं उठाया यह कदम, पर उन्होंने किया

इस तरह के दुर्गम और जंगलों से घिरे इलाके में जाना सभी के लिए आसान नहीं है, इसलिए ज़्यादातर लोग ऐसी जिम्मेदारी लेने से कतराते हैं। लेकिन क्रिस्टुराजा हर महीने बिना चूके यह सफर करते हैं और स्थानीय लोगों के बीच भरोसे और संवेदना की एक अनोखी मिसाल बने हुए हैं।

कुट्टियम्मल के लिए क्या बदल गया?

कुट्टियम्मल के रिश्तेदार अय्यप्पन बताते हैं कि पेंशन घर तक मिलने से दादी को आर्थिक सुरक्षा के साथ-साथ मानसिक सुकून भी मिला है। अब उन्हें लंबी दूरी तय करके खुद दफ्तर जाने की चिंता नहीं रहती, और वे अपनी बढ़ती उम्र में आराम से रह पाती हैं।

सीख: तकनीक से आगे है मानवीय संवेदना

तकनीक ज़रूर ज़िंदगी आसान बनाती है, लेकिन असली बदलाव संवेदना से आता है। एक सरकारी कर्मचारी का अपने कर्तव्य से बढ़कर इंसानियत निभाना यह दिखाता है कि व्यवस्था के भीतर भी दिल से काम करने वाले लोग मौजूद हैं। ऐसी कहानियाँ याद दिलाती हैं कि बुजुर्गों की आर्थिक और भावनात्मक सुरक्षा किसी भी स्वस्थ समाज की बुनियाद है।


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